Posted by: Nihal
Public Toilet mein...
केविन बहुत ही शर्मीला था। उसे बचपन से उसके माता-पिता ने बहुत लाड प्यार से पाला था। अब वोह १६ साल का हो गया था, कॉलेज जाता था, फिर भी उसकी माँ उसे खाना खिलाती थी। वोह रात को अकेले सोने से डरता था, इसलिए अब भी वोह अपने पिताजी को चिपककर सोता था। उसके पिताजी हरदम उस तरफ मुंह करके सोते थे और रात में धीरे-धीरे हिलते थे। मगर केविन को इसका मतलब नहीं समझता था। उसका छोटा सा लंड भी अब बड़ा हो गया था। कभी-कभी वोह अपने पिताजी से जब लिपटकर सोता तब उस लंड में अजीब-सी शरारतें हो जाती थी। तब वोह उसे अपने पिताजी से और चिपका देता। मगर उसके पिताजी कुछ नहीं बोलते - शायद उन्हें नींद में पता ही नहीं चलता था।
केविन अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थी। उसकी कॉलोनी में दूसरे बच्चे भी ज्यादा नहीं थे - अगर होते भी तो उसे उनके साथ खेलना पसंद नहीं होता। दोपहर को जब उसकी माँ सो जाती और उसके पिताजी ऑफिस में होते, तब केविन अकेला रहता। वोह अपने बुक्स पढता; कभी टीवी देखता और कभी ड्रॉइंग करता। उसे ड्रॉइंग का थोडा-बहुत शौक़ था। लेकिन इन सब से बढ़कर, उसने एक और मनोरंजन का तरीका ढूंढ लिया था।
जब वो बारह साल का था, तब ही से उसने मुठ मरना शुरू किया था। पहले अनजाने में, फिर मज़े ले-लेकर। दो बार तो उसकी माँ ने उसे पकड़ा भी था, और बहुत मारा भी था - मगर फिर वोह समझ गया की यह बात बहुत गलत है, लेकिन बहुत मजेदार भी। इस आदत को छोड़ना तो मुमकिन नहीं था - उसने चुपके से बाथरूम में मुठ मारना शुरू किया। जब पहली बार उसका सफ़ेद रस टपका, तब वोह बहुत डर गया था। उसे लगा जैसे कुछ बहुत बुरा हुआ है; उसने उस रात खाना भी नहीं खाया। लेकिन अगले ही दिन उसकी वासना ने फिर उसे बाथरूम में मुठ मारने पर मजबूर किया। फिर से वोह सफ़ेद माल निकला। यह मूत तो नहीं था। केविन डर गया था। फिर उसने लाइब्रेरी में 'adolescence ' (किशोरावस्था) पर एक किताब पढ़ी, बहुत गौर से पढ़ी। उसके बाद तो वोह बेफिक्र होकर दिन में कम से कम एक बार तो मुठ मारता ही था।
SSC के बाद केविन को विले परले के मिठीबाई कॉलेज में दाखला मिला। अचानक कॉलेज के वातावरण में केविन बौखला गया। उसे धीरे-धीरे समझ में आने लगा कि उसे लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं है। मगर उसे सब लोग चिढाते इसलिए वोह लड़कों को भी खुले-आम नहीं देख सकता था। बस उसके ग्रुप में जो एक-दो अच्छे लड़के थे, उन्ही को देखकर जी भर लेता। वोह पढ़ाई में अच्छा था, इसलिए उसके दोस्त बहुत हुए। लेकिन वोह उनमें से किसी से भी अपने ज़िन्दगी की सबसे ख़ुफ़िया बात बता नहीं सकता था।
इसी वक़्त केविन को एक अच्छा अनुभव होने लगा। उस ज़माने में इंटरनेट भारत में लोकप्रिय नहीं हुआ था। इसलिए केविन ने कभी किसी और का लंड नहीं देखा था। एक दिन जब ट्रेन बहुत लेट थी, तब वोह रेलवे टॉयलेट में गया। वोह पहली बार किसी रेलवे टॉयलेट में गया था। पेशाब की बदबू तो थी; मगर केविन को जोर की लगी थी। जब वोह मूत रहा था, तब उसके पड़ोस में एक और लम्बा आदमी आया। टॉयलेट का पार्टीशन ऊंचा नहीं था,अगर वोह आदमी थोडा सा झुकता, तो केविन का लंड देख लेता। वैसे केविन की हाइट भी ऊंची थी, मगर वोह आदमी बहुत छिपाकर मूत रहा था। केविन को बहुत मन हुआ कि वोह उस आदमी को अपना लंड दिखाए, मगर वोह अपना काम करके चला गया।
लेकिन उस दिन से केविन को पब्लिक टॉयलेटों का चस्का चढ़ गया। जब भी वोह अकेला रहता, रेलवे के टॉयलेटों में घुस जाता। कभी-कभी वोह नीचे उतरकर अपना लंड अपने जीन्स में डालता, ताकि कोई उसे देख ले। एक-दो बार तो लोगों ने देखा भी था। अगर कोई सेक्सी लड़का आ जाता, तो केविन झुककर उसका लंड देखने की कोशिश करता। फिर रात को घर जाकर उसके बारे में सोचकर मुठ मारता।
बात एक रविवार की है। केविन विले परले में ही दोस्त के बर्थडे पार्टी में गया था। रात को लौटते वक़्त 10 बजे थे। रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर ज्यादा भीड़ नहीं थी। तब केविन को अचानक कीड़ा उछलने लगा। बड़ी सरगर्मी में वोह विले परले के प्लेटफ़ॉर्म 3 वाले टॉयलेट में घुस गया। टॉयलेट में लाइट के लिए सिर्फ एक 40 वॉट का बल्ब था। अमोनिया की बदबू भरी थी, मगर केविन को अब वोह अच्छी लगने लगी थी। टॉयलेट में कोई नहीं था। वोह अकेला ही था। एक बीच वाली जगह पर वोह खड़ा रह गया और अपना जीन्स का जिप खोला। तभी एक और आदमी आकर उसके बगल में खड़ा हो गया।
केविन ने उसे तिरछी नज़र से देखा। वोह महाराष्ट्रियन लगता था, लम्बा नहीं था और सावला था। मगर बहुत हट्टा-कट्टा था। उसने सफ़ेद शर्ट पहना था,जिसके ऊपर के दो बटन खुले थे। उसने एक ब्लू जीन्स पहना था, जिसकी जिप खोलकर उसने अपना लंड निकला। केविन को उसके मूतने की आवाज़ सुनाई दी और उसका लंड खड़ा हो गया। वोह झांककर उसका लंड देखना चाहता था। उसने थोड़ी नज़र घुमाई और उसे आसानी से उसका लंड दिख गया। गेहुवे रंग था, मोटा और उसमें से पिशाब की भारी धार निकल रही थी।
उतने में उसका मूत्कर हो गया। केविन की तो एक बूँद भी नहीं टपकी थी। उस आदमी ने अपना लंड जोर-जोर से झटका और आखरी बूँदें टपका दी। केविन को लगा की अब यह जाएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ। वोह धीरे-धीरे अपने लंड को सहलाने लगा।
केविन का लंड बिलकुल तानकर खड़ा हो गया। यह चिकना उसके सामने मुठ मार रहा था। उसने अपने लंड की आगे की खाल ऊपर की और अपने लंड को धीरे से दबाया। उसका लंड भी खड़ा हो रहा था। कुछ पल बीत गए...
उस आदमी ने अब तक केविन की और ध्यान से नहीं देखा था, हालांकि दोनों बगल में ही खड़े थे। बस वोह धीरे-धीरे अपना लौड़ा हिला रहा था। अचानक वोह आदमी गाने लगा, 'समन्दर में नहाकर और भी।... नमकीन हो गयी हो।...' केविन को लगा जैसे वोह आदमी थोडा सा सरफिरा है। फिर भी, उसको मस्त होकर गा-गाकर लंड का मज़ा लेता रहा, केविन को उसकी तरफ बहुत आकर्षण हुआ। अब तो उसे अपना लंड दिखाना ही था।
केविन थोडा सा तिरछा होकर खड़ा रहा, ताकि उसका लौड़ा उस आदमी के तरफ हो जाए। अगर वोह आदमी थोडा सा सर हिलाता तो उसे केविन का लंड दिख सकता था। मगर वोह तो अपने ही काम में मदमस्त था। केविन और थोडा टेढ़ा होकर खड़ा हुआ। अब तो उसका लौड़ा सीधे उस आदमी के तरफ था। उतने में उस आदमी ने उसकी तरफ मुंह किया और उसका ताना हुआ लंड देख लिया। पहले एक-दो सेकंड तो कुछ नहीं बोला, फिर चिढ़कर बोलने लगा, "क्यूँ बे, मेरे ऊपर मूतने वाला है क्या ?" "कुछ नहीं, सॉरी।..." केविन ने कहा और तुरंत पलटकर सीधे दिशा में लंड किया।
शायद यह आदमी पागल नहीं था। केविन को बहुत शर्म आने लगी। मगर कुछ ही सेकंडों में उसे अपने गांड पर एक हाथ महसूस हुआ। उस आदमी ने अपना हाथ केविन के गांड पर रखा था और अपनी बीच वाली ऊँगली उसकी छेद पर घुमा रहा था। "मुठ मार रहा है क्या?" उसने पूछा। केविन भौचक्का रह गया। क्या जवाब देता! वोह बस मूरत बनकर खड़ा रहा। "शरमा मत, मैं भी तो यही कर रहा हूँ," उस आदमी ने कहा। "इस वक़्त इसी के लिए सब लोग इधर आते है। इतनी रात को प्लेटफ़ॉर्म पर कौन होगा?" केविन की हिम्मत बंधी। उसे पता चला की जिस मौके की वोह हमेशा से तलाश कर रहा था, वोह यही था। उसने एक सहमा हुआ हाथ उस आदमी के कंधे पर रखा। "बहुत लम्बा है रे तेरा लंड," उस आदमी ने कहा। "बहुत हिलाया है, लगता है।"
"हम्म," केविन ने कहा और अपना डरा हुआ हाथ उसके मोटे लौड़े पर रखा। पहली बार किसी मर्द का लौड़ा छूकर उसे बहुत डर लग रहा था। मगर फिर हिम्मत बनाकर दबाने लगा। उस आदमी का लंड पत्थर की तरह मज़बूत था। इतनी कड़क चीज़ हाथ में लेकर केविन की ख़ुशी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था।
"हिला दे, यार," उसने कहा, "अपना हिलाता है, वैसे ही मेरा भी हिला। "यह कहकर उस आदमी ने भी केविन का लौड़ा पकड़ लिया और दबाया। केविन के शरीर में बिजली दौड़ गयी। उस आदमी के हाथ खुरदरे थे, जैसे मजदूरों के होते है। उसकी कड़ी चमड़ी का स्पर्श लौड़े पर लेकर केविन को बहुत अच्छा लगा। उसने दो मिनट भी नहीं हिलाया था, कि केविन का रस निकला। तभी उस आदमी ने केविन की आगे की खाल दबा ली और रस को बाहर नहीं निकलने दिया। जब तक केविन छोड़ता रहा तब तक उसे केविन की आगे की खाल दबाये रखी। जब सब छूट गया तब एक साथ उसने केविन की आगे की खाल खोल डाली। एक साथ उसके सारा रस का अम्बार नीचे टपका। केविन को यह तरीका इतना अच्छा लगा कि आगे चलकर मुठ मारने में उसने इसी का प्रयोग किया।
वहां केविन भी उस आदमी का लौड़ा हिला रहा था। अब उसने भी तेज़ी बढ़ा दी थी। करीब एक मिनट बाद उसका भी छूट गया। केविन ने उसके साथ कुछ नयापन नहीं किया, क्योंकि यह उसका पहला अनुभव था।
बस उसने उस रस को नीचे टपकने दिया।
"मज़ा आ गया दोस्त," उस आदमी ने कहा और अपना जिप बंद करके नीचे उतरा।
"मुझे भी" केविन ने कहा, मगर उसके शब्द मुंह से निकले भी नहीं थे की वोह आदमी टॉयलेट से बाहर निकलकर कहीं ग़ुम हो गया।
केविन के आगे चलकर बहुत अनुभव हुए। मगर कोई भी अनुभव उस पहले अनुभव को भुला नहीं सका, हालांकि उसमें सिर्फ मुठ मारने के अलावा कुछ नहीं हुआ था।
यही है पहले सेक्स का आकर्षण।
अंत
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